Channel: Down To Earth
Category: Science & Technology
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Description: ग्राउंड वाटर यानी भूजल के लाल होने की यह शिकायत बिछड़ी गांव की है। यह गांव भूजल में औद्योगिक प्रदूषण का एक जीता-जागता त्रासदी वाला म्यूजियम बन चुका है। बिछड़ी गांव कभी पानीदार भी था और अपनी खेती-किसानी से खुशहाल भी। करीब 30 साल पहले 1989 राजस्थान में झीलों की नगरी कहे जाने वाले उदयपुर जिले के बिछड़ी गांव और आस-पास के छह किलोमीटर दायरे की जमीनों कुओं और भू-जल को हिंदुस्तान एग्रो लिमिटेड कंपनी के जहरीले रासायनिक डिस्चार्ज ने बर्बाद कर दिया था, जिसका दंश इस गांव में और आस-पास आज तक बरकरार है, जबकि करीब 5000 लोगों की आबादी वाले गांव को जुर्माने का कोई न्याय भी नहीं मिल पाया है। बीते हुए 30 सालों में इस देश में भू-जल प्रदूषण के मामले में कई गांव और शहरों की हालत बिछड़ी जैसे ही हो गई है। पानी-पानी हर कहीं लेकिन पीने लायक कहीं नहीं.... नमस्कार मैं हूं विवेक मिश्रा और इस बार मुद्दा यही है कि हम साफ पानी का अपना आखिरी खजाना यानी भू-जल को कैसे बर्बाद कर रहे हैं..... इससे पहले कि इस कार्यक्रम की यात्रा आगे बढ़े , आपसे गुजारिश है कि आप हमारी वेबसाइट डब्लयूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट डाउन टू अर्थ डॉट ओआरजी डॉट इन पर जाएं, वहां वेबसाइट के दाहिने ऊपरी कोने में आपको हमारे यू-ट्यूब चैनल का ऑइकन मिल जाएगा। कृपया रेगुलर नोटिफिकेशन के लिए आप हमारे इस यू-ट्यूब चैनल को सबस्क्राइब भी कर लें। हमारे यू-ट्यूब चैनल पर अभी आपको एक हजार से अधिक विज्ञान, पर्यावरण और सतत विकास से जुड़े वीडियो देखने के लिए मिल जाएंगे.. बिछड़ी गांव और उसके आस-पास की खेती की ज्यादतर जमीने औद्योगिक प्रदूषण के कारण बंजर हो चुकी है। इस औद्योगिक प्रदूषण को बेहद खतरनाक बताते हुए 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बिछड़ी गाव पर जो जुर्माना लगाया था वह चक्रवृद्धि ब्याज के साथ 202 करोड़ रुपए से ज्यादा का अब हो चुका है, लेकिन प्रदूषण फैलाने वाली कंपनी खुद को दीवालिया कर चुकी है डाउन टू अर्थ बिछड़ी और आस-पास के उन घरों में भी पहुंचा जहां 30 साल बाद भी बोरिंग से लाल रंग का एसीडिक पानी ही निकल रहा है। विश्व जल दिवस 2022 की पूर्व संध्या पर 21 मार्च को जारी यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2022 में पूरे विश्व में भूजल के इस्तेमाल को एक टिकाऊ मॉडल बनाने की वकालत की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया कि भूजल की सबसे ज्यादा निकासी करने वाले 10 देशों में एशिया के ही0 आठ देश शामिल हैं। और भू-जल की निकासी करने वाले इन 10 देशों में शीर्ष पर भारत का नाम है। यानी भारत सबसे अधिक भूजल पर निर्भर है। आखिर यह देश भूजल की निकासी कर क्यों रहे हैं? इसका जवाब यूएन की वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट बताती है कि भारत कृषि के लिए प्रति वर्ष कुल भूजल का 89 प्रतिशत उपयोग करता है - जो दुनिया में सबसे अधिक है। दुनिया में सर्वाधिक भारत में ही सालाना लगभग 251 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम)भूजल की निकासी की जाती है। भू-जल की निकासी जारी है लेकिन बदले में जमीन को वापस पानी लौटाना हम भूल रहे। इतना ही नहीं जो पानी भीतर सुरक्षित है उसे प्रदूषित भी कर रहे हैं केंद्रीय भूजल आयोग द्वारा जून 2021 में प्रकाशित डायनमिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स ऑफ इंडिया, 2020 के मुताबिक सालाना कुल भूजल रिचार्ज (पुनर्भरण) 436.15 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) किया गया, जबकि सालाना भूजल निकासी 244.92 बीसीएम की गई। इस तरह भूजल निकासी का स्तर 61.6 प्रतिशत रहा। इसका अर्थ है कि जितना पानी धरती में समा रहा है, उससे लगभग 62 प्रतिशत पानी हम लोग इस्तेमाल के लिए निकाल रहे हैं। जबकि 2004 तक भूजल निकासी का यह स्तर 58 प्रतिशत था। भारत के कुछ हिस्से बेसिहाब भू-जल की निकासी कर रहे हैं। उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में भूजल का दोहन 100 प्रतिशत से भी अधिक किया जा रहा है और यह देश में भयंकर भू-जल की कमी झेलने वाले इलाके यानी डार्क जोन बढ़ते जा रहे हैं… केंद्रीय भूजल आयोग ने देश को कुल 6,965 असेसमेंट यूनिट में बांटा हुआ है। ये असेसमेंट यूनिट देश के लगभग प्रत्येक ब्लॉक में स्थापित की गई हैं। अति दोहन वाले ब्लॉक पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में हैं। (देखें, नक्शा) पंजाब-हरियाणा ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे अधिक भूजल दोहन होता है। दिसंबर 2021 में शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में कैग की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि पंजाब में 80 फीसदी ब्लॉकों में भूजल का अतिदोहन (100 फीसदी से अधिक) हो रहा है, जबकि हरियाणा में लगभग 65 फीसदी ब्लॉक में भूजल का अतिदोहन हो रहा है। निकासी और बदले में जमीन को पानी न देने की रवायत के चलते साफ पानी के भंडार सर्वाधिक जोखिम में हैं पानी राज्यों का विषय है और राज्य सरकारें ही इसे विनियमित और प्रबंधित करने की जिम्मेवार है और इसके चलते हमारे देश में भूजल विनियमन पर वर्तमान में कोई केंद्रीय कानून नहीं है। केंद्रीयजल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग ने 2005 में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों केलिए भूजल के नियमन और विकास के लिए एक मॉडल विधेयक जारी किया था और अपील की थी कि वे अपने-अपने राज्य में भूजल प्रबंधन कानून लागू करें, लेकिन कैग की रिपोर्ट बताती है कि भूजल संरक्षण के इरादे से दिसंबर 2019 तक देश के 19 राज्यों में कानून बनाया गया था. लेकिन सिर्फ सिर्फ चार राज्यों में ये कानून आंशिक तौर पर लागू हो पाया है। बाकी राज्यों में या तो कानून बना नहीं या फिर लागू नहीं हो पाया नाइट्रेट प्रदूषण में जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित और अनिश्चित वर्षा इस समस्या को और अधिक बढा रहा है। ध्यान रखें कि हमारे साफ पानी का आखिरी खजाना यूं ही प्रदूषित होता रहा तो इसकी बड़ी सजा नई पीढ़ी भुगतेगी। सरोकारी पत्रकारिता के लिए हमें आपके सहयोग की जरूरत है। कृपया हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करके, उसे शेयर करके और लाइक करके हमारा हौसला बढ़ाएं।